न्याय का सच – एक राजा की अनोखी परीक्षा

प्राचीन समय की एक प्रेरणादायक कहानी

बहुत समय पहले, राजा विक्रमादित्य के राज्य में न्याय और सच्चाई को सर्वोपरि माना जाता था। वे हमेशा सही निर्णय लेने के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन वे चाहते थे कि उनके राज्य में भी लोग ईमानदार और न्यायप्रिय बनें। इसलिए उन्होंने एक अनोखी परीक्षा लेने का निश्चय किया।


राजा की चुनौती

एक दिन राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि वह एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में हैं जो सबसे ईमानदार और न्यायप्रिय हो। उन्होंने यह भी कहा कि जो कोई भी यह साबित कर देगा कि वह सच्चा और न्यायप्रिय है, उसे पुरस्कृत किया जाएगा।

राज्य के कई लोग इस परीक्षा में भाग लेना चाहते थे, लेकिन राजा ने सिर्फ तीन लोगों को चुना:

  1. रघु – एक व्यापारी, जो अपनी बुद्धिमानी और ईमानदारी के लिए जाना जाता था।

  2. सुमित – एक गरीब किसान, जिसे हमेशा सच्चा और मेहनती माना जाता था।

  3. विकास – एक सैनिक, जो हमेशा देश की सेवा में तत्पर रहता था।


अनोखी परीक्षा

राजा ने तीनों को बुलाया और कहा, "मैं तुम्हें एक-एक बीज दे रहा हूँ। तुम्हें इसे तीन महीने तक अपने घर में लगाकर उसकी देखभाल करनी है। जो सबसे अच्छा पौधा उगाएगा, उसे विजेता घोषित किया जाएगा।"

तीनों ने राजा के दिए हुए बीज को घर ले जाकर बोया और उसकी पूरी देखभाल की।

रघु और विकास के पौधे कुछ ही दिनों में उग आए, लेकिन सुमित का बीज अंकुरित नहीं हुआ। उसने बहुत प्रयास किया, मिट्टी बदली, खाद डाली, पानी दिया, लेकिन पौधा नहीं उगा।

तीन महीने पूरे होने के बाद, राजा ने सभी को अपने-अपने पौधे लेकर दरबार में बुलाया।


सत्य की परीक्षा

दरबार में रघु और विकास अपने हरे-भरे पौधे लेकर आए। उनके पौधे देखने में बहुत सुंदर थे। लेकिन सुमित खाली गमला लेकर आया। उसे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, पर उसने झूठ का सहारा नहीं लिया।

राजा ने सभी से उनके अनुभव पूछे।

रघु ने कहा, "मैंने इस पौधे की बहुत देखभाल की, हर दिन पानी दिया और सूरज की रोशनी में रखा।"

विकास ने भी अपनी मेहनत बताई।

जब राजा ने सुमित से पूछा तो उसने सिर झुका लिया और कहा,
"मुझे नहीं पता कि मेरे बीज से पौधा क्यों नहीं उगा। मैंने पूरी मेहनत की, लेकिन यह अंकुरित ही नहीं हुआ।"

राजा यह सुनते ही मुस्कुराए और खड़े होकर बोले, "सुमित ही इस परीक्षा का विजेता है!"

पूरा दरबार हैरान रह गया। रघु और विकास ने आपत्ति जताई, "महाराज! हमने तो हरे-भरे पौधे उगाए हैं, फिर भी सुमित को विजेता क्यों बनाया गया?"


छुपा हुआ सच

राजा ने कहा, "तुम्हारे पौधे झूठे हैं, क्योंकि जो बीज मैंने दिए थे, वे उबाले हुए थे – यानी उनसे कभी पौधा उग ही नहीं सकता था। सुमित ने सत्य का साथ दिया और स्वीकार किया कि उसका पौधा नहीं उगा। जबकि तुम दोनों ने दूसरों से बीज लेकर झूठा पौधा उगाया। इसीलिए, सच्चा और न्यायप्रिय इंसान वही है जो कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का साथ दे।"


सीख जो हमेशा याद रहेगी

इस परीक्षा से पूरे राज्य को एक महत्वपूर्ण सबक मिला –
"सच्चाई और ईमानदारी हमेशा विजयी होती है, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।"

आपके लिए एक सवाल:
"अगर आप इस परीक्षा में होते, तो क्या आप भी सुमित की तरह सच बोलने की हिम्मत रखते?"
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