भूमिका: ये कहानी है एक ऐसे बेटे की जिसने अपनी माँ के टूटे सपनों को अपने हौसले से फिर से जिया, और उसे मुकाम तक पहुँचाया। यह कहानी सिर्फ एक बेटे की नहीं, हर उस इंसान की है जिसने ज़िंदगी की ठोकरें खाईं लेकिन फिर भी हार नहीं मानी। कहानी: गाँव के एक सादे से घर में रहती थी "शारदा" – एक विधवा महिला, जिसकी दुनिया उसके बेटे "अजय" तक सिमटी हुई थी। शारदा खुद अनपढ़ थी लेकिन उसका सपना था कि अजय पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। हर रोज़ सुबह 4 बजे उठकर वह दूसरों के घर बर्तन धोने जाती, ताकि अजय की स्कूल की फीस भर सके। अजय एक समझदार लेकिन लापरवाह बच्चा था। वो अक्सर स्कूल बंक करता, दोस्तों संग गली में क्रिकेट खेलता। शारदा हर रात उसके पास बैठकर कहती, "बेटा, माँ का सपना है कि तू बड़ा अफसर बने। तुझे किताबों से डर नहीं लगना चाहिए, मेहनत से लगना चाहिए।" लेकिन अजय को तब इन बातों का मतलब समझ नहीं आता। एक घटना ने सब कुछ बदल दिया... एक दिन गाँव में एक मेले का आयोजन हुआ। वहाँ एक अधिकारी जीप से उतरे। सफेद कपड़े, चमकदार चश्मा, और लोगों की भीड़ उन्हें सलाम कर रही थी। अजय ने पहली बार देख...
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