छाँव की तलाश – गरीब लकड़हारे की सच्ची प्रेरणादायक हिंदी कहानी | GyanVani
गांव का एक कोना और संघर्ष की शुरुआत
बात एक छोटे से गाँव की है जहाँ एक बूढ़ी माँ और उसके दो बेटे रहते थे – बड़ा बेटा रघु और छोटा बेटा मोहन।
पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था। घर की जिम्मेदारी रघु पर आ गई थी। उसने पढ़ाई छोड़ दी और जंगल से लकड़ियाँ काटकर शहर में बेचने लगा।
हर सुबह सूरज से पहले उठकर रघु जंगल जाता, काँटों से लहूलुहान होकर भी लकड़ियाँ काटता और फिर 10 किलोमीटर पैदल चलकर शहर में बेचता। कभी 20 रुपये मिलते, कभी 30। पर वो जानता था कि उसे हार नहीं माननी है।
भाई का सपना, रघु का संकल्प
मोहन पढ़ाई में तेज़ था। उसके सपनों में IAS अफसर बनना बसा था। लेकिन घर की गरीबी उसकी राह का सबसे बड़ा काँटा थी।
रघु ने ठान लिया था — चाहे खुद की जिंदगी अंधेरे में बीते, लेकिन वो अपने भाई की जिंदगी को उजाले से भर देगा।
रात को जब मोहन पढ़ता, रघु चुपचाप दिए की रोशनी में उसके पास बैठकर लकड़ियाँ छांटता।
जब भी कोई किताब खरीदनी होती या स्कूल फीस भरनी होती, रघु और ज्यादा मेहनत करता — कभी मजदूरी, कभी लकड़ी की गाड़ी खींचना।
आसान नहीं था रास्ता
कई बार रघु को ताने सुनने पड़ते – “बच्चा पढ़ाकर क्या करेगा?”, “तू तो खुद अनपढ़ है!”, “सपने गरीबों के नहीं होते रघु!”
लेकिन हर बार रघु सिर्फ एक बात सोचता – “अगर मैं थक गया, तो मोहन का सपना अधूरा रह जाएगा।”
और वो फिर चल पड़ता — जंगल, धूप, कांटे, थकान — सब उसके जज़्बे के आगे हार जाते।
वो दिन जब मेहनत रंग लाई
मोहन ने 12वीं की परीक्षा पूरे जिले में टॉप की। लोग हैरान थे कि एक लकड़हारे का बेटा ये कैसे कर गया।
रघु की आँखें भर आई थीं, लेकिन वो रोया नहीं। उसने मोहन से कहा — “अभी मंज़िल नहीं आई है भाई, बस रास्ता बदल गया है।”
मोहन ने ग्रेजुएशन के बाद UPSC की तैयारी शुरू की। रघु की मेहनत अब और दोगुनी हो गई। वो दिन-रात काम करता, खुद फटे कपड़े पहनता लेकिन भाई के लिए किताबें और कोचिंग की फीस भरता।
और आखिरकार...
तीन साल बाद, पूरे गाँव में ढोल बज रहे थे। अखबारों में छपा – “मोहन, एक लकड़हारे का बेटा, बना IAS अधिकारी।”
गाँव वालों की आँखें खुल गईं। जिन लोगों ने कभी रघु को ताने मारे थे, आज वही उसके पैर छू रहे थे।
मोहन ने सबसे पहले अपने भाई के लिए एक पक्का घर बनवाया और माँ के इलाज के लिए शहर के अच्छे अस्पताल में दाखिल करवाया।
जब मोहन ने अपने पहले भाषण में कहा –
“अगर मेरे जीवन में कोई भगवान है, तो वो मेरे भाई रघु हैं – जिनकी छाँव में मैंने सपने देखे और पूरे किए।”
तब रघु रो पड़ा… लेकिन इस बार खुशी से।
कहानी से सीख (Moral of the Story):
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हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादे पक्के हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।
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त्याग और मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाते।
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कभी भी सपनों को छोटा मत समझो, बस उनके लिए लड़ते रहो।
GyanVani संदेश:
ये कहानी हमें सिखाती है कि ज़िंदगी में मुश्किलें सबके हिस्से आती हैं, लेकिन हार मानना किसी समाधान का हिस्सा नहीं होता।
रघु जैसे लोग ही दुनिया को दिखाते हैं कि सच्ची छाँव किसी पेड़ की नहीं, बल्कि अपनों की मेहनत और त्याग की होती है।
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